घर

साभार गुगल

सूना घर अक्सर मेरा
बहुत शोर मचाता है
लौट के आती है खुशिया
जब भी मन मुस्काता है
आम, पलाश सब हरे हो गए
धरती-अम्बर भी परे हो गए
मुझे रोज़ रुला जाती है
भीनी महक घर आँगन की
दुनियाँ के जंजाल में थक कर
सो - गए अजब ही मेले में
घर दूर छिप कर मिलता कही अकेले में
फिर भी उलझी नित नए झमेले में
घर आखिर घर ही होता है
अपने कोटर में छिप कर हर कोई सोता है
रोता है अपने मन के घर आँगन में
आराधना राय "अरु"

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

याद

कोलाहल

नज्म बरसात