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Showing posts from August, 2015

आते हो

                      आते हो -------------------------------------------------------------------------------           ईश्वर तुम धरती पे क्यों  आते हो            लौट-लौट के चले जाते हो           पुकारते सभी अपनों को तुम हो             जिन्हे छोड़ के चले जाते हो           कह दूँ  तुम भी प्रेम से वश में होते हो                  कष्ट से तुम नहीं रोते हो                 उसको मालूम है दुनियाँ का चलन                   बेज़ुबाँ से अरु क्यों होते हो                  आराधना  राय "अरु" -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

मिलोगे .....................................

     मिलोगे ..................................... सुबह के कोहरे को अोढ़े तुम मिलोगे तो सही शाम की सुगबुगाहट में तुम ही होगे फिर कही घने देवदार के सहारे रोक लो गे तुम कही शर्मीली सी वादियों में तुम ही दिखोगे फिर कही देर तक मिल कर चले अब रुक भी जाओ तुम कही एक दिन मुझ से मिलोगे बन के शिवाला कोई बात इतनी सी है केवल मेरे बन पाओगें भी नहीं साथ तेरे मैं दूर तक आऊँगी हाशिया खींच के ठहर जाऊँगी किसी रोज़ तेरी बन  जाऊँगी तुम मिलोगे किसी मोड़ पे मुझे मेरे बन पाओगें भी नहीं  आराधना राय 'अरु' ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ Camera Choose a sticker or emoticon

साक्षी कहलाता कोई

साक्षी कहलाता है कोई ---------------------------------- सुधियों के महाजाल का ताना बुनता है कोई प्राची के आँगन द्वार पे बहला जाता है कोई उड़ते पाखी तू ही बता जा श्रृंगार करता है कोई हृदय से चन्द्र वरण कर यूँ ही अपनाता है कोई जलज के नीर से भी पूछा क्यों बलखता है कोई व्यर्थ दर्प भार न सह कर सूर्य बन जाता है कोई रंगिणी के मंगलाचरण पर इठलाता कब है कोई सृष्टि के आचरण को पतित बतलाता ना है कोई रवि ही निरन्तर साक्षी 'अरु' क्यों कहलाता है कोई निज के लिए कर्म का जीवन जी के बतलाता है कोई आराधना राय "अरु" आराधना राय "अरु"

प्रेम की बानी --------दोहे

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साभार गूगल प्रेम की बानी बोल रहे राधा- रमण घनश्याम रीता जग सब पड़ गया प्रेम की भाषा को खोये जनि नहीं विश्वास को मुख से ले प्रभु का नाम अमृत कलस भरा रहा ज्यों पान न करें कोय ह्रदय की बानी एक है चाहे घूमे सौ -सौ  धाम कैसी विपदा आन पड़ी "अरु" भजे ईश का नाम आराधन राय 'अरु'

मन की भूमि

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साभार गूगल उपज रहा मन की भूमि पे विप्लव अंकुर का ही धान किस पे बाड़ लगा रोकोगे जान मचा हुआ हो भूचाल भूखा पेट राम ना क्या जाने कोडी और छदाम क्या जाने रवि और रंजन की बात यहाँ अश्रू बहे या तन का लहू बहे मान ले जो तुझ से हृदय कहे नारी की लज़्ज़ा की बात कहूँ माँ के उधड़े तन को देख कर कौन सा मनुज है जो ये कहे तेरा मुझसे भी कोई  नाता है आराधना राय "अरु"   

स्वप्न

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बादलों की पालकी पे हो सवार इंद्रधनुषी सपने हो रहे साकार कोई प्रियतम बन के आता है क्यों मुझे फिर भरमा जाता है सावन तुम नयनों से आते हो     जलज बरस-बरस के जाते हो पीड़ा अनाम बन कर आते हो हृदय को कंपित कर  जाते हो क्या बात हैं यूँ कह के जाते हो मदभरे से स्वप्न दिए जाते हो वेदना सह कर यूँ मुस्कुराते हो मुझे इतना क्यों तुम रुलाते हो जीवन के प्रश्न हल कर रही हूँ जानें कैसा अध्ययन कर रही हूँ ईश्वर में तुझ से ही मिल रही हूँ "अरु"नियति के बाण सह रही हूँ आराधना राय "अरु "

भोर

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भोर ने आँखें अपनी खोली है उनीदीं आँखों से देखती है वो रेशमी पलकें उठती है उसकी पल्ल्व पात बहक से उठते है छेड़ कर वरुण- वायु जाती है सुमन सी व्यार बह  जाती है देख ये भोर रुपहली आती है 'अरु ' तुझे भी खूब बहकती है आराधना राय 'अरु '

प्रीत

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  साभार गूगल प्रीत करती रही श्रृंगार अपना मूक नयनों ने किया प्रणय कितना हृदय में खिलते रहे प्रसून प्रेम  के हृदय में बज़ते रहे सितार से कितने गीत अधूरे गा -गा कर छोड़ दिए स्वर करते भी रहे  निनाद कितना मन झंकृत हुआ वीणा कि तारों सा कोई करता रहा मान -मनुहार कितना धरा ने धानी चुनरिया अपनी ओढ़ी है क्षितिज हुआ है मौन देख अब कितना रूप ,गंध ,मधुरिम किलकोरियों से कोई लुटाता रहा यूँ प्रेम कितना अदिति रही अबूझ पहेली सी अलख जगा गया 'अरु' कितना आराधना राय 'अरु '     काव्य -गीत

तिरंगा

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पिछले साल यकायक वो मिल गया अचंभित हो उसे  झुक कर उठा लिया फटे हाल था फिर भी मुस्कुरा रहा था अपना नाम भी तिरंगा बतला रहा था मैंने पूछा क्या मिला तुझे ए यू  तिरंगे बेमतलब पैरों तले मसला  ही तू गया अमेरिकन या ब्रिटिश में रह गया होता  मध्य वर्गीय लोगों सा नहीं पीटा होता  बैक से ऋण ले अपने आप को रो रहे है ना जानें कितने राष्टीय उत्पादों होने के भ्रम को रोज़ जी कर मौन से अब हो रहें  है  उपलब्धियाँ बेमानी सी पढ़ कर ही खुश हो नई मुसीबतों में अपना ही सर दे ही रहे है मुद्रा स्फीति दर बढ़े या फिर वो कहीं घटे हम महॅंगाइयों में ना जानें कैसे रह रहे है  जानते नहीं बस होड़ का झुनझुना  दे कर अपनी संतानों को यूँ बेदम क्यों कर रहे है अब तो पता नहीं कि रो रहे है या हँस रहे है तिरंगा हँसा और बोला कहानी में दम नहीं है जहाँगीर ने यहीं सोच कर अँग्रेज़ों को बुलाया था दो सौ साल से ज़्यादा घर अपना ही लुटवाया था अपना घर , अपना होता है उसे ठीक भी करना है  अपनी नौका में छेद हो तो स्वयं भरना ही होता है कह कर अचानक तिरंगा मेरे हाथ से उड़ गया था मुझे मेरे भारतीय होने के अहसास से भर गया था मंदिर

शहीद

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साभार गुगल सीमा लांघ कैसी वो वहीँ क्यों पड़ा था मृत्यु अश्रु से नहीं हँस के सह रहा था मौन हो शव तेरा भूमि पर यूँ गिरा था श्वास अंतिम बार  तूने ले ये कहा था ऋण मिट्टी का था अब चुकता ही हुआ जीवन  तुझ से ही यहीं तो मुक्त हुआ माँ के प्रेम को क्या झुठला यूँ  सकूँगा  मृत्यु पथ पर ना तुझ से विलग  हुआ  हँस के देना विदा की धरती की है सुता मृत्यु नहीं अमरत्व को अब पा जाता हूँ सैकड़ों में बंट कर देख फिर आ जाता हूँ देश को नमन कर वो "अरु"यूँ हँस रहा था आराधना राय "अरु" -----------------------------------------------------------    

प्रयाण

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साभार गुगल 15 अगस्त पर विशेष  प्रयाण --------------------------------------------------- हिमालय की चोटी आवाज़ देती है रगों में नया सा ये उन्वान देती है ---------------------------------------------- रातों को जग कर प्रहरी सा वो अटल रहा जिसका सीना सदा ही देश के लिए रहा जिसका लहु गंगा सा बह कर पवित्र रहा हे वीर आर्येवत पर तू सदा विजित रहा रण में शौर्य -पताका वो फहराता ही रहा देख आसमां से कोई शत्रु फिर से ना रहे कोई चिंगारी दिखा फिर यहाँ ना कोई रहा सज़ग ,धीरता से तुम्हारा ही प्रयाण रहा आराधना राय "अरु"

चिट्ठियाँ नाराज़ थी

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साभार गुगल चिट्ठियाँ नाराज़ थी ------------------------------------------------------------- चिट्ठियाँ नाराज़ थी बाँचने वाला कोई ना था हाल अपना कह कर सुनाने वाला कोई ना था --------------------------------------------------------- गाँव कि दहलीज़ क्यों रो कर हो गई पराई मन का आँगन सूना पड़ा बेचैन हो गई तन्हाई --------------------------------------------------------- मेरे देश में अब कोई प्यार का आँचल ना था मंदिर, मस्जिदों की तकरार में हो गई पीड पराई -------------------------------------------------------------- देश अनाथों की तरह हिस्सों में कहीं बँट गया शहरों को आइना दिखलाता गाँव मेरा सो गया ------------------------------------------------------------ ठंडी ब्यार उन्हें क्या छूती जिनका दिल मर गया यवनिका चेहरों से हट गई आँखों में वो सावन ना था ---------------------------------------------------------------- मूक हो चुके बोल है "अरु" आवाज़ देने वाला कोई ना था मेरे घर के आगंन में आसमान कोई तुझ सा ना था आराधना राय "अरु "

शब्दों के बाण

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आशा और निराशा के बीच जो श्रण मैंने और तुमने बांटे है सोचों कितनी सच्चाई से मैंने आँके है तुम्हारे उपहास से मैंने अश्रु नहीं बहाये है  टीस को ह्रदय में बंद कर अर्थ जीवन के मैंने नए पाये है सच कहुँ तो तुमसे अधिक दर्द मैंने ही अब तक पाये है तुम से अधिक विकल हो अधीर हो चुप -चाप सहज हो कर विष बुझे शब्दों के बाण हर पल  मनुष्य हो कर मैंने ही तो खाए है "अरु" बहिष्कृत हो कर यूँ  ही ना जानें कौन से स्वपन सजाएँ है। आराधना राय "अरु " ---------------------------------------------------------------------------------------------------------- नई कविता या अपारंपरिक कविताएँ , जो छंद मुक्त होती है , पानी की तरह सरल भाव को प्रदर्शित करती हैं। "चंपा के फूल" इस ब्लॉग में केवल हिंदी कविताओं को स्थान दे रही हूँ। आराधना राय "अरु" लेखिका , कवित्री