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Showing posts from October, 2015

कविता

कविता --------------------------- उसको रोटी चाँद सी लगती है मन बहलाने का नाद लगती है  चार दिन कड़ी धुप में रह कर हर शए मुझे उन्माद सी लगती है रोज़ जीते - मरते जो पेट की खातिर खाली पेट बात ना अच्छी लगती है लड़े कोई हिन्दू मुसलमान के लिए गरीब की बात हिंदुस्तान सी लगती है बात ये आम नहीं खास कही है हमने "अरु" सुधरे क्या जिन्हे बात बुरी लगती है आराधना राय "अरु "

बता तूने क्या पाया मन

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बता तूने क्या पाया मन -------------------------------- बाँच कर अपने हृदय को चिट्ठियों कि तरह एक- एक लम्हा बे -साया कर दिया बंधे थे भाव अंतस में कही  उन्हें कह दिया रीते मन कि बात क्या समझाती तुम्हें अपने सपनों का दहन स्वयं कर दिया राख को कुरेद कर क्या  रख दिया  दहकती आग कि चिंगारी  बाकी है अभी मरना यही जीना बाकी है बात अपनी कह कर तूने क्या पा लिया बता तूने क्या पाया मन मौन रह कह दिया आराधना राय "अरु"

शब्द के शहतीर --------------------------

शब्द के शहतीर -------------------------------- शब्द के शहतीरों से जो यूँ घायल  ना कभी  ही  हुए मान - सम्मान क्या ,कुछ  भी ना था  जिनके लिए क्यों सहज़ता से कष्ट भी सह कर हँसे दुसरों के लिए अपमान के विष पी गए अधरों से उफ तक भी ना हुए वासना के रूप ,गंध का पलायन ही  सदा करते रहें पथ कंटकीण उनके लिए सदा  के लिए ही क्यों हुए  जाति-पाति के भेद को निर्वासित कर वो चलते  रहें दुरूह कार्य  भी सरलता से जिन से यूँ कहीं स्वयं हुए अनचिन्हों को  जो सदा चिन्हित  ही करते क्यों रहे मार्ग कि बाधा से वो तो गर्वित ही ना जानें क्यों हुए आराधना राय    -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------

ना पाती

नदी हूँ ,बह नहीं पाती चिट्ठी हूँ कह नहीं पाती चाँद तुझको भी देखा है बात तुझे कह नहीं पाती दीये कि टिमटिमाती लों जली मगर बुझ ना पाती मैं हूँ कि नही अब जिंदा ये बात कह नहीं अब पाती निकली हूँ मैं रेगिस्तानों से आस हूँ जुड़ नहीं क्यों पाती आराधना राय "अरु"

ज़ख़्म दिल

 zakham dil ka mukkder ho gaye hai kare kya hum kahi pe kho gaye hai bharm na zane kis ko ho gaya hai an dariya bhi samunder ho gaye hai main sehra main rahe ya gulsita main dil akela tha mera akela rah gaya hai daag dil pe liye phirte rahe umer bher suna hai aaj unke thikane algho gaye hai unhe apna maan kr apna k ah diya hoga khta meri thi "aru" sab ab bevajah ho gaya hai -------------------------------------------------------------------------------- ज़ख़्म दिल के मुक्क़दर हो गए है करें क्या हम कहीं पे खो गए  है गैर के हम क्यों गए है दरिया भी समंदर हो गए है वो सहारा में रहे या गुलिस्तानों में दिल अकेला था अकेला रह गया है दाग दिल पे लिए फ़िरते क्यों है आज हम भी दीवाने हो गए है जिन्हें  अपना कहा  वो तो नहीं है खता मेरी थी "अरु" वावफा हो गए है  अगर मेरी बात ने आप को चोट पहुंचाई हो तो माफ़ करे। शुक्रिया।

,2 अक्टूबर विशेष महात्मा तुम सपूत भारत के थे ,शास्त्री तुम महात्मा बने थे

mahatma jise din  tum saput ho rashtre ki nishani bane the us din rashtre pita khhalaye , sahtri ji dhore garibi main tume janm liya tha tum ne bhi rashtre main nav -nirman kiya tha mahak utthi thi bhrat ki bagiya tum zis satye se kaam kiyatha 2 अक्टूबर विशेष महात्मा तुम सपूत भारत के थे , दुनियाँ ने बापू कह प्यार  से तुम्हे अपनाया था सर्व सम्मति से तुम राष्ट्र कि निशानी बने थे राष्ट्र के पिता तुम उस दिन बने थे जिस दिन माता -खंडो में बंटी थी भारत -सपूत से तुम राष्ट्र -पिता बने थे, शास्त्री तुम महात्मा संग जन्म ले बड़े हुए थे २ अक्टूबर को जन्म ले राष्ट्र सपूत सपूत ही रह गए कही ,अडिग मगर सदा खड़े थे मुश्किलों में सदा तुम निर्भय हो चले थे भारत के प्रधान थे मंत्री ही बने थे