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Showing posts from August, 2016

बारिश,

रिमझिम करती बारिश, के मौसम में सावन तूम आ कर भरमाते क्यों हो हरा -भरा जल थल है माना तूम मुझे रोज़ समझाते क्यों हो इतने  वेग से हँसती है रोज़ दामिनी द्रुतिगमिता स्मित झलका के रोज़ पूछती हाल है सावन निर्झर झर शोर मचाते क्यों हो तूम आते हो अपनी चाहत बताते क्यों हो आराधना राय अरु

ढूंढा क्यों था

दिल ये पूछे तुझे ढूंढा क्यों था हवा बही ऐसे जैसे तू वही था पन्ने के हर सफे पर नाम था ना कहना नाम लिखा क्यों था पुरवयां क्यों बही तेरे नाम की आँखों ने क्यों भेजा पैगाम भी सुना मगर तूने मुझे सुना ना था कहा तूने मगर मुझे कहा ना था फिजा ने भी कभी मुझे सुना ना था दिल ने कहा पहले तुझे सुना ना था कहती है दिल की धडकन शाम से गीत कोई दिल ने मेरे सुना ना था प्रीत तेरी-मेरी किसी ने बुनी ना थी सागर और नदी की कहानी बुनी थी सावन से मांग कर ये प्रीत भरी थी ख्वाब ऐसा किसी ने कभी सुना ना था आराधना राय "अरु"

चाँद

चाँद के साथ चाँदनी खिलखिलाती रही तेरे बहाने से खुशियाँ दरीचे से आती रही तू सहर सा मेरे दर को रोशन करती रही तू मेरे घर में चाँद बन के जगमगाती रही  वो खूबसूरत सा चेहरा ईद सा चाँद ही रही इसी बहाने "अरु"बहार बन के वो आती रही आराधना राय

जरुरी तो नहीं

भूलना वो हर बात जरुरी तो नहीं तुझे याद कर रो लेना जरूरी तो नहीं माना गर्दिश ए आलम का मारा है वो उम्र भर यूँही  उसे सोचना जरुरी तो नहीं रास्ते और निकल जाते है मंजिलों तक  यूँही महफिलों में धुमना जरुरी तो नहीं आसमान की  खिड़की से कोई देखता है  अर्श पे उम्र बसर करना जरुरी तो नहीं  तेरे लिए देख सितारें  तरस के रह जाएगे  अपना कह कर  देख लेना जरुरी तो नहीं इश्क  इबादत है,आराधना,  छु कर देखो हाथ  आ जाए  सनम कोई ज़रूरी तो नहीं आराधना राय aru

लोरी

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नन्ही सी प्रीत भली री चाँद भी आया दौड़े जी नन्ही को गले से लगाया और देर सी कहानी सुनाई आराधना राय :अरु:

उन्मुक्त: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं

उन्मुक्त: हरिवंश राय बच्चन - क्या भूलूं क्या याद करूं