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Showing posts from April, 2016

उदासी नज़्म

तमाम ख्वाहिशें पल में खाक हुई बात ही बात में क्या खता हुई किसी दरख्त का साया पासबां नहीं धुप रास्तों कि जब नसीब हुई पाँव  नहीं दिल पे छाले पाए है  गम मिरे नाम इतने आए है बू - ए आवारा पूछती रही गम का सबब भटकती रही थी यू  भी तेरे बगैर कहीं शाम के बाद  तेरे  निशां होंगे कहाँ वक़्त से गुज़रें तो अब हम होगे कहाँ जश्न रुसवाइयों का मानते भी क्यों सामने खुदा रहा अरु उसे भुलाते भी क्यों आराधना राय अरु

दुख में कितना सुख

चिलचिलाती धूप जब  खूब शोर मचा आती है तपती- हुई धरती  सूनी हो बंजर सी हो जाती है चूम - चूम कर  रो कर बिछड गए जो शाखों से पात- पात पे शोर मचा मुझे बतला कर जाती है पुरवैया  दुःख में कितना सुख दे कर तू जाती है मन के कोनों को शांत भाव से भर कर जाती है धरती को साया देने वाले शोक ताप  हरने वाले तुझे कानों में कोई मधुर गीत सुना कर  जाती है जल कि प्यास  कितना  मन को तरसा जाती  है प्यास पंछी की बुझ कर अनबुझी सी रह जाती है अदिति रूठ कर अंत-सलिला सा हाल बताती रही  दुख में अपनी आवाज़ अब किस से छुपा  जाती है मानो दुख से दुखी विधाता अग्नि प्रखर बरसता है धरणी के दुख से जैसे ईश्वर तुम्हारा  कोई नाता है तृषित , शुधित जन - क्रंदन का देव मात्र ही दाता है पंछी के  गान सृष्टि तुझ को सब ही अर्पित हो चले अम्बर धरती के लिए कितने अश्रुधार बहा  जाता है दुख में अपना सा साथ ही सुख कितना दे कर जाता है हवा का चलना तेरा मुस्कुराना याद करा कर जाता है आधात हदय को तोड़ कर आँखों की बरसात से भीगा नीर दुख में सुख का बहाना बना कर कभी आ जाता है आराधना राय "अरु"

शक्तिमान

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शक्तिमान ------------अतुकांत --------------------------------------- सुना था चेतक ने रण में महाराणा की जान बचाई थी हे परम वीर ओ शक्तिमान तूने क्यों जान गवाई थी बिन बात आत्मघाती हमला किस कि आन पे बन आई थी पशु समझ कर किस कठोर ने लाठी तुझ पर क्यों बरसाई थी मनुज ने दाव अपने खूब चलाए है बेजुबान पे कितने अत्याचार कराए है गो - माता है , धरणी धर है उस पर राजनिति कर मुस्कुरायेगे हिंदू - मुस्लिम भेद जो करते वो शक्ति का मान नहीं रख पायेगे ओ भारत के प्रहरी रण वीर चेतक या शक्तिमान तुझे नहीं भूल पायेगे आराधना राय अरु

चाँद

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लुक छिप कर चाँद बहलाता है तू घने बादलों से निकल छिप जाता है तू सुना कर हाल  दिल के सब्र ओ करार के मेरी और देख जाने क्यों मुस्कुराता है तू दीवाना कहूँ या हँस कर कातिल कहूँ तुझे जाने  क्यों पीछे पीछे चला आता है तू स्याह रातों की राह का साथी बन कर ना जाने किस को राह दिखलाता है तू छत पे निकल कर कुछ कह जाना तेरा आँगन में अटक कर पहरों ताक जाता है तू आराधना  राय अरु

सदा रहेगा-------------------अतुकांत

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साभार गुगल  दुःख का सुख में  साथ सदा रहेगा  चोली- दामन सा  यही रिश्ता रहेगा अश्रु पी के अधरों पे   मुस्कान रखेगा   जिया सब के लिए   इंसान वही बनेगा   उम्र की आड़ी तिरछी   लकीरों के पार कहेगा   धूमिल होती कहानियों    के बीच  कहानी कहेगा    मौन बन  चुपचाप  इन    आँखों से दुख बन झरेगा    अंदर ना जाने कौन  फिर    मर कर  तेरे रंग में जिएगा   आराधना राय "अरु"

माँग लूँगी अतुकान्त

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 साभार गुगल आज नहीं तो कल माँग लूँगी रेत के तपते सहरा से तपिश बरसती भीगती बारिश से नमी आँख कि माँग लूँगी जीवन तुझे जीने के लिए सुख नहीं कुछ दुःख ही माँग लूँगी दूर तक जाते काफ़िले से माँग लूँगी इंतज़ार के लम्हे यह ना सोचना तेरी ख़ुशी  तुझ से माँग लूँगी  मर कर मौत नहीं  जीवन मैं तुझे फिर जीयूँगी डर नहीं लगता कि ढल जाऊँगी किसी  धुप कि मानिंद जिंदगी तुझे हार कर मैं तुझ से जीत माँग लुंगी "अरु" रुकता नहीं कोई यहाँ तेज़ हवा सा बह इक दिन मैं भी बहुंगी, आज नहीं मैं कल फिर तुझसे जिंदगी नही मौत के पीछे छिपी धड़कन मांग लूँगी

रात बहारों के नग्में गाती है

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साभार गुगल ------------------------------------------- चाँद को देख जाने क्यों मुस्कुराती हो हवाओं का मंद मंद सा राग सुनाती हो जैसे देखा हो पहली- पहली बार तुम्हें अनजान बन सामने मेरे आ जाती हो तुम्हे इंतज़ार है मेरा कितनी सदियों से एक अनबूझी पहेली बन  सामने आती हो नजर मिला , कभी झुका कहीं बातें तुमने सुबुगाहट लिए मन में  चुपचाप रह जाती हो शबनम पीरों आँखों में किस बात का अहसास कराती हो शीतल छांव सा चंवर  डुला मन सहला जाती हो धुप की तपिश में सुलगता  हुआ तेरा चेहरा लगा ओंस से भीगी  बातों से मन  के घाव भर जाती हो मेधवर्णी श्यामल तृप्त भाव से देख किस को समझाती हो रात के डोले में बैठ बीते दिन याद कराती हो तूम कुछ और नहीं  स्वपन हो क्यों हँस कर मुझे तूम बताती हो आराधना राय ''अरु''

दो धड़ी अतुकांत कविता

वक़्त के दरमियाँ खड़े रहकर साँस ले लूँ दो धड़ी फुरसते मिलती है किसको जब जिंदगी हो दो धड़ी तूम ना मानो बात मेरी मन  कि चुभन  कह जाएगी तेरे मेरे मिलने से पहले  धडकने रुक जाएगी भागते- दौड़ते जिंदगी के काफ़िले है कौन किसको देखता है और जी रहा है दो धड़ी बात अपनी कह कर चुप रह जाऊँगी दो धड़ी गर  सफर बाकी रहा तो मिल लूँगी दो धड़ी तेरे मेरे बीच की दीवार भर है दो घडी आराधना राय "अरु"

दोहे

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  कौआ करें काँव - काँव, कर्कश सी आवाज़  कूकती है कोयलियाँ,  करें जगत में राज़  मीठी बोली काम की, सब देगे ही ध्यान  कड़वा कहना है बुरा, जग का रखिए ज्ञान विष लेता है प्राण ही ,  सर काटे तलवार मीठी - मीठी बात से , जी भर मार कटार मारे - मरे न जो कभी, करें उसे बदनाम ह्रदय धात है शूल सा ,जाए परम के धाम तिरछी दृष्टि काक की , देखत है हर कोय ढोंगी करता ढोंग है , जान न  पाता कोय सच्चा संत क्या करे,   जब उलझे व्यवहार भूल गई संसार कि अरु, तज के लोक विचार आराधना राय "अरु" दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मा त्राओं के अनुसार निर्धारित होता  है.  इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं.  पहले चरण  को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है. विषम  चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती  है.  अर्थात दोहा का एक पद 13-11 की यति पर होता है. यति का अर्थ है  विश्राम. यानि भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप  एक विराम बन जाता है.