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Showing posts from November, 2015

रुपहली बात

मन जब करे ईश्वर की  पुकार पिया बन हिया से करे झंकार --------------------------------------------------------------------------------------------------------- कोई सोया सकून से आज जिंदगी भी खुश हुई आज नींद इक ख्वाब की है बात रुपहले सपनों की है बारात चाँद , तारे और महकती रात तन्हाइयों में सरुर देती रात किसी ने छेड़े हो रंगों के तार वीणा के सुर से देती आवाज़ मखमली मन की हो बस  बात बादलों के पंखो पर हो सवार मन मौन है कहता है हर बार प्रियतम आओगे तुम मेरे द्वार अरु  के संग उमंग का कोई राज़ आराधना राय "अरु" प्रीतम - पिया - ईश्वर को पुकारने वाले नाम

अपनी सरज़मी

मैं सिर्फ सदभावना की बात कर रही हूँ युद्ध ना ही हो तो अच्छा-- गोली और जंगली लोगों का कोई मज़हब नहीं----आप युध के मेडल के पीछे छिपा दर्द नहीं देखते है मे मैं देखती हूँ -- और बात है god of honor की मैं उस दिन को बड़ा मानूंगी जिस दिन गोली आतंक और नफरत की वजह से ना चले यह कविता समर्पित है देश को और चाहती हूँ , गोली ना सरहद के इस पार चले ना उस पार नफरत रोके-----पता नहीं और कितने पाकिस्तान चाहिए अपनी सरज़मी पर आशियाना कही होता  सपनों का अपना इक ठिकाना बना  होता छिप कर सय्याद बैठा है अब तक चमन में जाल फ़िर किसी ने आकर ना बिछाया होता बाँट ज़मीन अपने ज़मीर को मारा ना होता नाहक गमों को इस दिल से ना लगाया होता वो  देश था कभी आज विदेश ना बना होता  ये हिन्दू -मुसलमान का झगड़ा ना कही होता  हिन्दुस्तान तू अगर पाकिस्तान ना बना होता सरहदों का खेल रोज़ यहाँ ना खेला गया होता भूल गए माँ को नई सरहद को  बनाया होता ज़र, जोरू, औरजमीन जो व्यापार ना बना होता   तोड़ कर दिल बेईमान से रिश्तों से ना बंधा होता इंसान अगर तू कभी इंसान कही रह गया होता सब  बेच कर बाज़ार की सजावट ना बना ह

रिश्ते

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साभार गुगल रेशम के धागों की तरह नाज़ुक होते है हाथ लगे तो रिश्ते पल में  मैले होते है ठेस लगाने पर टूट कर बिखर जाते है किरचों की तरह वो हाथ में चुभ जाते है कहानी बन आसुओं में पिधल जाता है दर्द बन कर जुबान पर चला आता है बहरूपिया बन हँसा कर रुला जाता है डोर रेशम की ये मजबूत बन जाती है साथ लम्हों का जन्मों सा बिता जाती है अजनबी  सफर में अपना बना जाती है इक गाठं जन्मों तक रुला कर जाती है डोर  रिश्तों कीजीवन  बांध कर जाती है आराधना राय "अरु"

केवल आह

केवल आह से उपजा होगा कवि के अंतस का छिपा उफान दर्द की भाषा लिखता होगा विहल हो अश्रु से वह नादान प्रीत का मोल चुकाया होगा  पीर बनी हो उसकी पहचान नित -नए स्वपन दिखाता होगा आशाओं के बस  स्वर्ण - विहान समय बोल कर उड़ गया होगा पाखी ज्यों उड़ कर गया वितान दर्द शेष रह गया तो होगा जल कर दीप बन गया अनजान आराधना राय "अरु"