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Showing posts from September, 2015

आदत है

मुझे सुनने की आदत है उसे कहने की आदत है कह कर बांच ही लेती है  वो कृष्णा की कली सी है नाजों में निखरी भी  है राधा की वो मीत सी है फिर भी मौन है मूक है "अरु" तू बता तू अब कौन है 

बिछड़ गई हूँ

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साभार गूगल वक़्त के मोड़ पर तुझ से बिछड़ गई हूँ दीवार पे टंगी धड़ी की तरह रुक गई हूँ सोच की आंधी में कही खुद थम गई हूँ राह में चल कर ही तो ज़ख़्मी हो गई हूँ नदियों के प्रवाह को मोड़ कही खो गई हूँ धरती से बढ़ा नेह खंडित स्वयं हो गई हूँ काल की कठिन परीक्षा में पार्थ मैं खड़ी हूँ समय की डोर थामे वो सारथी ढूँढ रही हूँ आराधना राय "अरु"    

अँधेरे और उजाले के बीच

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साभार गूगल  अँ धेरे और उजाले के बीच तुम मिलोगे तो सही  ज़िन्दगी बुझने लगेगी पर तुम मिलोगे तो सही  वक़्त डरा सहमा सा बैठा देख रोता है अब यही  अँधेरे और उजाले के बीच तुम मिलोगे तो सही  दम घुटने लगा ना जाने इस धुंधलके में ही कही  बैर और  नफरतों से भरा कोई मिला  मुझे यही  अँधेरे और उजाले के बीच तुम मिलोगे तो सही  जीवन - मृत्य के बीच के प्रयाण में दिखोगे यही  ना बुझ सके उस हर प्यास में तुम ही रहोगे यही  अँधेरे और उजाले के बीच तुम मिलोगे तो सही  आरधना राय "अरु"

मन के सम्बन्ध

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साभार गूगल ----------------------------------------------------- मन संबधो के पेड़ उगाता है  कोई मधुर संगीत सुनाता है  पत्ते , कोपल जड़ और तने   मेरा सदियों से कोई नाता है  पूर्वा बहती पछुआ चलती है  मुझ को नित कोई बुलाता है  मन का अंकुर फूट  जाता  है  कोपल बच्चो सा बहलाता है  मन में हिलोर मचा   जाता है  कोई मन ही मन   मुस्काता है   मन सम्बन्ध बना  के जाता है  जाने क्या मुझे ये समझाता है     आराधना राय "अरु"        

तुम संग

     तुम , सखा, सहोदर, मित्र अरु भाई  कृष्ण संग  द्रोपदी की लाज रह पाई।  सुभद्रा जगत दात्री सी भगनी जब पाई  अर्जुन संग बंधन में बांध हर्षित हो पाई  तुम संग जन्म -जन्म का नेता मेरे साईं  जीवन डोर यह मेरी  तुम संग बांध पाई आराधना राय "अरु" 

बाबा

बाबा ने प्यार से एक गुड्डा ला दिया मुन्नी ने प्यार से  नज़रबट्टू लगा दिया जो भी माँगा मिल गया ला कर के दिया गुड़डी को एक सुन्दर सा गुड्डा दे दिया दाम ऊँचे खूब मगर महँगा फिर भी दिया इस बार मगर गुड्डी को गुड्डे के साथ दिया बाबा खुश थे गुड्डी को अाशियाना एक दिया बिक गया असबाब घर को वीराना कर दिया गुड्डी के लिए बाबा ने खुद को कही बेच दिया गुड्डी के आँखों में आँसू न आये  घर बेच दिया। आराधना राय "अरु"

परिभाषाएँ

मन की जाने कितनी परिभाषाएँ पढ़ डाली मैंने , मन की सारी इक्च्छाओं की तस्वीर बदल दी मैंने बस्ती -बस्ती चलने वाले पर्वत पर  जा ठहरे भूली हुई आशाओं की फिर झड़ी लगा दी मैंने सावन बरसे , महुआ महके या भादो क्वार सा दहके इस जीवन की जाने कितनी ही सब रीत बदल दी मैंने मन के लिए चली , महकी और युँ तकदीर बदल दी मैंने आराधना राय "अरु "

याद नहीं करती हूँ

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तुझे भूल जाने के डर से, याद नहीं करती हूँ तेरी बात दिल के कोने में, छुपा के रख लेती हूँ तेरे दिए एक आसरे पे , सुबह से शाम रोज़ करती हूँ किसी रोज़ मुझ से तुम पूछना, क्या में तुम पे मरती हूँ तो यही कहूँगी हँस के तुझ से मैं, तेरे रोम रोम में बसती हूँ तुझे याद जिस -पल मैं आ सकूँ , मैं उन्ही पलों पे मरती हूँ तुम मेरी और मैं तेरी साँस मैं रहती हूँ। आराधना राय 'अरु'

भूल गई थी

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  साभार गूगल उस रात भूल गई थी मेरा दिल अभी वहीं पड़ा था टुटा सा , बेकार हो कर कही गिरा हुआ था लम्हों की बारात चाँद तारों के साथ रही फिर दिल ने धड़क के बात कही थी दिल भी मेरा वहीं कही पड़ा था कुछ उलझा सा , सुलझा  नहीं था मैंने सोचा तुमने उठा  लिया होगा अपना समझ के ले लिया होगा पर किसी और का सामान  तुम लेते नहीं मेरा दिल क्या लेते ,खुद  अपना सारा काम कर लेते हो , फिर मुझ से  भला क्या लेते उदास हो मैंने दिल उठा लिया घर आ के देखा उस  पे दो टाँके लगे थे दिल अब भी पास  है मेरे , पर क्या पता था वो मेरा नहीं तेरा दिल ले आई हूँ अपना कर इसे खुद से अलग अब तक क्यों नहीं कर पाई हूँ। आराधना राय "अरु"

गीत

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साभार गूगल  गीत ------------------------------ वो फ़साना ही कुछ और था उसे देख कर सब चले गए वो रास्ता ही कुछ और था तू मिला नहीं बड़ी देर तक निगाह में अब कौन था  मेरी भीगी पलकें उठी नहीं  वो मुस्कुराता सा कौन था एक नींद थी बड़ी देर से मेरी आँखों में आ कर रुक गई मुझे उसका शिद्दत से इंतजार है आराधन राय "अरु" अतुकांत

ना जाने क्यों

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   साभार गूगल      ना जाने क्यों     तुम्हें  ढूँढती रही     राह अपनी खोजती रही     तुम्हें पाने के लिए    तुम्हें ही खो कर     हँसती रही    तुम से मिलने के    जतन करती रही    सिर्फ़ तुम्हें पाने के लिए    सोचती हूँ तुम से नाता क्या था    आँसू आँखों से बहे और बहते रहे    फिर भी तेरे दर्द को झेल क्यों गई    यूँ तेरा मुझ से मिलना क्या था    जब तूने मुझे जाना ही नहीं था     आराधना राय "अरु"     अतुकान्त कविता