क्या कहिये नज़्म
प्यार ,इश्क, लगावत का क्या कहिये
डूब कर दरिया पार जाने का क्या कहिए
उसने निभाया ही नहीं ज़माने का चलन
उसकी रहगुज़र से गुजरने का क्या कहिए
चाँद तारों का सफर मैंने किया ना कभी
उसके बामों दर कि सहर का क्या कहिए
प्यार फसाना था उसने निभाया ही नहीं
इश्क़ के ऐसे कारोबार का क्या कहिए
आराधना राय अरु
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-05-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2340 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
dhnywad dibang ji
Deletebahut sunder krati hai
ReplyDeletenzm hai aur kya kahiye shukriya
Deletenzm hai aur kya kahiye shukriya
Deleteबेहद सुन्दर नज्म ....
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