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Showing posts from December, 2015

बात कहता था

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साभार गूगल वो सादा दिल था बात कहता था ख़ामोशी के साथ राज़ कहता था अपने आप से जुदा रहता था  मगर दिल का हाल कहता था लिबास उम्र भर सादा रहा उसका हँस कर पते कि बात कहता था उसको नहीं था वक्त का अंदाज़ वो सच्ची बात मुँह पर कहता था मलाल था नहीं दिल में उसे कोई अपनी रेखाओं में देखता रहता था छुप कर नहीं सरेआम कहता था खयाली नहीं वो यथार्थ कहता था ईश्वर तूम खो गए होगे कही उससे तुम्हे ही खोजता दिन रात रहता था करूँ क्या बात उसकी वो मसीहा था "अरु" सखा सा पिता दुख में जिया था

जिया

मुक्तक-------       शेष रही अभिलाषा का विस्तार किया जीवन  जिए बिना ही स्वीकार किया आस जोड़ जीने वाले को ही मान दिया जाने पहचाने बिना कैसा श्रृंगार किया  भग्न रही संवेदनाओं को अंगीकार किया  सावन ने पतझड़ जैसा ही व्यव्हार किया  आसूँ पी कर जीने वाले किसका दर्द जिया  मोल - भाव कर जीवन को निस्सार किया  जलज नैनों से बरसा किसका उद्धार किया  किस पथ पर चल कर भव् सागर पार किया  मित्र भाव से छला गया हर्षित क्या हृदय हुआ  बाधित करते कर्म उनको क्यों स्वीकार किया आराधना राय "अरु"

घर

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साभार गुगल सूना घर अक्सर मेरा बहुत शोर मचाता है लौट के आती है खुशिया जब भी मन मुस्काता है आम, पलाश सब हरे हो गए धरती-अम्बर भी परे हो गए मुझे रोज़ रुला जाती है भीनी महक घर आँगन की दुनियाँ के जंजाल में थक कर सो - गए अजब ही मेले में घर दूर छिप कर मिलता कही अकेले में फिर भी उलझी नित नए झमेले में घर आखिर घर ही होता है अपने कोटर में छिप कर हर कोई सोता है रोता है अपने मन के घर आँगन में आराधना राय "अरु"

गुनगुनी धुप

गुनगुनी धुप  मुस्कान बन फैली  सर्द रातों में महक बन फैली रात कि ठिठुरन जिस्म में  फैली चोर सन्नाटें मन मन में बसते है ठंडी हवाए अब फिज़ा में फैली धुंध कि गर्द में नज़र आता नहीं कुहासे सोच के बसते है .... सुबह कि धुप कब नज़र में फैली "अरु" चाहत के नर्म नग्में बदल गए कैसी आवाज़ है जो कोहरे से मन तक फैली" सुबह कि धुप जब मन में फैली मुस्कुराती बात होटों तक फैली आराधना राय "अरु"

तूफान

शोर ऊँचा सुनाई देता है जब भी बढ़ जाता है झूठ  का तूफान सच रह जाता है अकेला कही मौन हो , तूफानों में अडिग खड़ा हो जाता है है सहज हार जाए तूफानों से सच शक्ति है  वो नहीं घबराता है पांच पांडव थे दुर्योधन असंख्य था महाभारत  जीतना दुष्कर जीवन- मरण के पार उठ कर पताका विजय कि पांडवों ने फहराई थी कृष्ण कि गीता अटल सत्य है केवल-- कर्म ही धर्म है बात केवल कृष्ण ने बताई थी हार जाते है सौ झूठ दुर्योधन के एक सत्य ही कर्म बन साथ आता है---- गीता का पाठ हर कोई कहाँ जीवन में उतार पाता है सच अकेला कभी जब क्रोस पर लटकाया जाता है -- कभी सुकरात ईशु बन धरती पर स्वर्ग लाता है यही है इतिहास जो अपने को बार बार दोहराता है आराधना राय "अरु"

तुझ से मिले ------अतुकांत---- -----------------------------

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साभार गुगल ----------------------------- सुबह से शाम ज़िन्दगी के ताने-बाने बुने रेशम से महीन धागे से रिश्तों के पैबंद सिले जार- जार रो कर तुझ से मिले डूब कर देखा कभी सहरा भी गिला लगे इस तरह रोज़ हम तुझ से मिले समंदर में उस तरह से हम हर एक दरिया से मिले... ज़िन्दगी बता हम तुझ से क्यों मिले मेरी बदहवासी देखी तूने..... रोती आवाज़े भी सुनी तूने बेबस है इसलिए हम तुझ से मिले.... जीने के लिए मर कर क्या तुझ से मिले.. अरु बहुत अभी अश्क पीने को....प्यासा गर दरिया है दरिया क्यों रहे... आराधना राय" अरु"

सच जीवन का

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साभार गुगल सच जीवन का ---------------------------------------- सोच कर यही पाया ज़िन्दगी  तेरे हाथ क्या आया उम्र भर खोजते है जिसको हम बता हाथ कि खाली लकीरों के सिवा क्या पाया एक पल कही खुशियाँ भी खिलौना है और कहीं गमगीन मातम पाया जिंदगी सोच तूने क्या पाया जुल्म करना जिनकी हो फ़ितरत रो कर उन के सामने क्या पाया आराधना राय "अरु"

मेरी सांसों में

कविता -------------------- तुम बसें हो मेरी सांसों में  मेरी धड़कन में तुम समाते हो  मैं थरथरा रही हूँ लों बन कर तुम मेरे साथ  जले जाते हों इन वीरानियों में देख ली दुनियाँ तेरे बगेर हम जी कर मर जाते  है तुम अपनी साँस से महकते हो तेरे संग रह कर पा लिया है तुझे तुम मेरे रोम- रोम में बसते  हो मेरी सांसो में महक जाते हो मेरी निगाहों में धुंध का साया है  तुम किसी धूप सा मुस्कुराते हो तेरे कदमों  में ज़माना पड़ा "अरु"तुम साया  बन कर आते हो आराधना राय "अरु"

जाती बहार में

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साभार गुगल मौसम के रंग -राग गए जाती बहार में फूलों के लब से बोल गए जाती बहार में गुम हो गए सभी जैसे सर्द रात के में कही ठंडक बनी रही दिलों में जाती बहार में सोए हुए थे पेड़ सभी जगाने के बाद जैसे कफस में सो गए कही जाती बहार में उम्मीद अपनी अपनी थी सर्दी के देश में कैसे कहे कौन रो कर ना उठे जाती बहार में नादाँ है कुछ ना बोलिए मौसम नहीं सही "अरु" कातिल है अजब साथ जाती बहार में आराधना राय "अरु"

कोई बात है

------------------------------------- नयनों ने नयनों से कही क्या बात है रूप का आँचल संवारती कोई बात है --------------------------------------------------- अलकों को सजा लेने की कोई बात है मधुर गीतों से सजी फ़िर कोई बात है ---------------------------------------------------- हमने देखी दुनियाँ अजब कोई बात है बोल कर हँसती तुम्हारी भी कोई बात है -------------------------------------------------- जागती आँखों ने कही फ़िर कोई बात है उमर के मोड़ पर रुकी फ़िर कोई बात है --------------------------------------------------- पल -हर पल तुम्हें निहारती कोई बात है परत दर परत चढ़ी खमोशी कोई बात है ------------------------------------------------------ रेत का तूफां था नहीं माना कोई बात है ले गया संग अपने बस्तीयाँ कोई बात है -------------------------------------------------------- तुम से तू का सफर रहा ये कोई बात है "अरु" आहत है मन कह कोई बात है आराधना राय "अरु"

मन में लहराता है

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साभार गुगल सागर कोई मन में लहराता है मंद मुस्कान लिए कोई आता है. कोंपल को स्नान करती बुँदे कहे   सधा रस हौले बरसा कौन जाता है मेरी सुधियों में जब तू आ जाता है सुबह सुनहरी ओढ़ प्रीत सिखाता है पाषण हुए  ह्रदय में सखी बसा हुआ गीत बहला कर मुझे ही क्यों जाता है आराधना राय "अरु"

परम -प्रेम का हाला

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साभार गुगल परम -प्रेम का हाला ------------------------------ प्रिय , पी कर बैठी हूँ तेरे हाथों से हाला निज जीवन को बना रही रस का प्याला प्राणांत तक उदित रहेगी मन में आस विभोर उल्लासित रहेगा होगी पूरी प्यास जय - विजय के संग आराधना का विश्वास पूरित होती रहेगी जन्मों की अद्भुत साध तुम बोलोगे रस मन में भर मुस्कुरा जाओ प्रिय , बोलो तुम कैसे बंध गीत सुनाओगे जीवन - हाहाकार में ह्दय को बहला जाओ तपते हुई धरती को कोई सावन तो दे जाओ तम कालिमा से कजरारी रात में तुम आओ "अरु "जीवन में प्रकाश  लों ज़ला कर जाओ आराधना राय "अरु"

बात पुरानी थी

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साभार गुगल  तुमने कही कोई बात पुरानी थी मेरे बोलो में तेरी ही कहानी थी बोल बोलते से हँसे  म्रदु मधुकर जागते सोते लम्हों में बयानी थी स्मृति- के  पंख लगा  उड़ गई थी मुख से मौन हो क्या कह गई थी मुझ से रूठी सी बात कह गए थे तुम्हारी में सदा के लिए हो गई थे शब्दों के फासलें  पड़े रह गए थे दूर आहटों को पुकार कह गए थे  स्वपन झरते थे किस पारिजात से भूल से क्या  कुछ मुझे कह गए थे जड़ हो  थी तुम चेतना ही हो गए थे बिना साज़ के "अरु"  बिन रह गए थे आराधना राय" अरु"

रखा क्या है

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साभार गुगल बेवज़ह की बातों में रखा क्या है तेरी झूठी बातों में रखा क्या है आईना होता तो दिखलाता शक्ल इन ज़ुबानी बातों में रखा क्या है तोड़ दी तुमने वादों से अपनी अना बेकार की बातों में रखा क्या है हम भी दुनियाँ देख कर आए सनम बुतपरस्ती निभाने में रखा क्या है पैमानों का सब्र टूट जाए इक  यहाँ तेरे इन रीते प्यालों में  रखा  क्या है बेपनाह मौहबते नाहक ना  जता "अरु" बात बेबात की बातों में रखा क्या है आराधना राय "अरु"

तुम्हें महसूस करना

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साभार गुगल तुम्हें हर पल महसूस करना अपनी हथेलियों में भरना चाँद के टुकड़े में भीगों कर माथे पर सजा कर रखना साथ तुम्हारें हर पल रहना माना तुम हो मेरा गहना सूरज को मान कर गहना किरणों की ऊष्मा को पहना तेरीआभा को लगा कर सीने तुम्हें अपना कर साथ चलना आराधना राय "अरु"

कोई बात है

नयनों ने नयनों से कही क्या बात है रूप का आँचल सवारती कोई बात है --------------------------------------------------- अलकों को सजा लेने की कोई बात है मधुर गीतों से सजी फ़िर कोई बात है ---------------------------------------------------- हमने देखी दुनियाँ  अजब कोई बात है बोल कर हँसती तुम्हारी भी कोई बात है -------------------------------------------------- जागती आँखों ने कही फ़िर कोई बात है उमर के मोड़ पर रुकी फ़िर कोई बात है --------------------------------------------------- पल -हर पल तुम्हें निहारती कोई बात है परत दर परत चढ़ी खमोशी कोई बात है ------------------------------------------------------ रेत का तूफां था नहीं माना कोई बात है ले गया संग अपने बस्तीयाँ कोई बात है -------------------------------------------------------- तुम से तू का सफर रहा ये कोई बात है "अरु" आहत है मन कह  कोई बात है आराधना राय "अरु"

जाती बहार में

मौसम के रंग -राग गए जाती बहार में फूलों के लब से बोल गए जाती बहार में गुम हो गए सभी जैसे सर्द रात के में ठंडक बनी रही दिलों में जाती बहार में सोए हुए थे पेड़ सभी जगाने के बाद जैसे कफस में सो गए कही जाती बहार में उम्मीद अपनी अपनी थी सर्दी के देश में कैसे कहे कौन रो कर ना उठे जाती बहार  में नादाँ है कुछ ना बोलिए मौसम नहीं सही "अरु" कातिल है अजब साथ जाती बहार में आराधना राय "अरु"

कविता

कविता --------------------------------------------------------- दुनिया के बाजार में चंदन नहीं बेचा करती हूँ दीप से तुलसी वदनं किया करती हूँ तन की ओट में मन का व्यापार नहीं करती हूँ संबंधों को मन से जीया करती हूँ आँचल, रौली, मौली का खेल नहीं करती हूँ पूजा- अर्चना से नमन किया करती हूँ नारी की अस्मिता का मान किया करती हूँ अश्रु को पौंछ जीवन जीया करती हूँ नदियों की धारा अविकल बहा करती हूँ पत्थरों से निकल आगे राह लिया करती हूँ "अरु" सहज नहीं जीवन जीना अरण्य सा रमन , भ्रमण कर गीत नये जीया करती हूँ आरधना राय "अरु"

तहरीर देखती हूँ

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साभार गुगल  तहरीर देखती हूँ --------------------------------------------------   कागज़ की जुबानी से तहरीर देखती हूँ   दिल में छुपी तेरी हर तस्वीर देखती हूँ    कागज़ नहीं कोरे हर हर्फ तोलती हूँ   वक़्त की किताबों में तहरीर देखती हूँ  एहसास लिए खुद के गम को झेलती हूँ  काँटों में उलझी सी जंजीर देखती हूँ    बागों में गुलों के रंग - बेरंग देखती हूँ  लफ्जों की बयानी से  ज़मीर देखती हूँ ख्वाहिशों के जंगल में जुगनु को देखती हूँ तन्हा रूठी सी तकदीर को देखती हूँ मायुस नहीं दिल की तमन्ना  देखती हूँ आँखों से "अरु"दिल कि जागीर देखती हूँ आराधना राय "अरु"

बात

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साभार गुगुल बात ------------------------------ बात- बेबात की करते हो तुम दीवानों सी बात करते हो कफस में रह कर ज़िन्दगी कि बात करते हो रौद चुके तन मेरा मन की बात करते हो भूले बिसरे ज़माने की बात क्या करते हो आजमाने कि बात रोज़ हमसे करते हो दीवानों की तरह कहते है हमसे मिलते हो अश्क बाकी नहीं आँख में दिल के दुखने की बात करते हो आराधना राय "अरु"

कलम ----------------------

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गूगल के चित्र सौजन्य से काश परमात्मा तुम बना देते कलम सत्य लिखना सत्य कहना  होता धर्म चलती सदा घार सी सरस्वती कलम काश, भगवान मुझे तू बना देता कलम लिखती जगत की रीत की प्रीत का भरम रंग भरती बेरंग ना होने देती अपनी कलम सुरमई रंग से आकाश रंगती देती मेरी कलम कहानियों को जन्म दे रवानी देती बस कलम  मासूम सपना अपना पूरा मेरा कर देती कलम आराधना राय "अरु"

मंज़र देखा

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सौजन्य गूगल भोपाल त्रासदी पर श्रद्धांजलि  मंज़र  देखा ------------------------------- --------------------------------------------------- बेबसी में आस का मंज़र  देखा  जगह धुँआ -धुँआ सा देखा आँख में आँसू  सा देखा, हर शक्स सहमा सा देखा रात के गहरे सन्नाटे में देखा जहरीली हवा के सायेसा देखा सिहरता -कांपता सा मंज़र मौत की आगेश में लिपटा देखा उमर  कट गई अँधेरे में उन्हें  इक रौशनी के लिए तरसते देखा तमाम  उम्र कफस में रह कर बारहा  हमने उजालो की ओर देखा दफ़न मिट्टी में  दबी लाशों का अम्बार  लगा कर बस तमाशा देखा जान पर खेल कर इंसान हर तरफ रोता  हुआ पूरा -शहर  ही  देखा काँपती रूह थी "अरु" लाचारियों का सुबह तक अजब दौर भी देखा आराधना राय "अरु"

दिन- रैना

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राह देखते नहीं थकती बिरहन रैना पंथ निहारते है मेरे  सिहरते नैना दिन कि लिखावट करते थकते सुन- सुन कर हारे बैना प्रीत कि बाती बिन बुझे मन चैना दुख छुपा है सखी, का से कहे पीड कोई होना आराधना राय "अरु "

सधन

कविता ----------------------------------- सधन घना सा तेरा साया, हर पल मुझको ही भरमाया ठंडी ओस पर आकर छाया ईश्वर किसके रूप में आया मदमत हवा झोके से आया हँस कर किसी ने बहलाया पात- वृक्ष जी भर मुस्काया पीले -पत्तों का मन भर आया टूट -टूट कर सिमट बिखर गए जीवन में सब नीरस वृथा गया देखों ईश्वर किससे रूठ गया "अरु " मधु सपनों में ना आया प्रेम से पूरित वो नहीं हो पाया आराधना राय "अरु"