अब के सावन में बरसात ना होगी इतना रोये है हम अब कोई बात ना होगी दिल जला कर क्या पा लिया तुझे अब के सपनों में भी वो रात ना होगी मरहले और भी है इक तेरी राहों के सिवा आरजू दिल में रहेगी मुलाकात ना होगी आए मुझे देखने कितने परवानो की तरह रश्क ए चमन में मगर वो बात ना होगी -----------अरु
भीतर – बाहर है कोलाहल बहता पानी सा हल हल हल छुपा हुआ है कही अंतस में मन के भीतर के विप्लव में आसन नहीं चुप रह जाना चुपके –चुपके विष पी जाना मचा रहा है हाहाकार फिर गलियों के हर एक चप्पे में चीखे गलियाँ और चोबारे क्यों मौन रहे इस क्रदन में आराधना राय
शोर में गुम है ज़िन्दगी मौन आहटों के है साये तेरे दिल से मेरे दिल तक बंद है सब तरफ की राहे अपने अपने कोटरों में बैठ करते खुद अपने से ही बाते वक़्त के पायताने पे बैठ लिखते रहे हिसाब अनगिनत लौट के आते है पर सुन नहीं सकते अपनी दिल की आवाज़े सुनने वाला कोई नहीं आज पीट रहे ढोल खुद अपना लिए शोर के बीच मैं है शोर इतना देख भी न पा रहे वो कल अपना रो पड़े ज़िन्दगी ज़िन्दगी को आज शोर मैं गुम हुए सब सन्नाटे आज
हसीन थी के तेरी जुल्फों में उलझी थी जब तलक
ReplyDeleteअब चुभ रही है बूंदें जो मेरा आशियाना बहा गई!