नवगीत--- हवा हूँ
साभार गुगल
बह रही हूँ हवा हूँ मैं
खुल के बागों में बहार दे
हल्की सी थपकी दी है
सावले मुखड़े को संवार दे
बरस ऐसे कि भीग जाए
मेरा मन और तेरी चूनरी
आस जन्मों कि हो पूरी
फूल - फूल पे निखार दे
बह रही हूँ हवा हूँ मैं
रूप -रंग धरा संवार ले
शहर , जंगल , गाँव का
भेद नहीं करती हवा हूँ
मस्त, अल्हड, चिर योवना
जीवन दे मुस्कुराती हूँ
हवा हूँ, हवा बह रही हूँ
मैं बहल - कर बहलाती हूँ
आराधना राय "अरु"
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