सावन
बूंद बूंद बन कर अम्बर से
सावन की झड़ी लगी है
मन के ताने बाने पे
किस की नजर पड़ी है
हरी वसुंधरा जल-मग्न
हो कर क्या व्यथित हुई है
तृषित चातक को स्वाति
की बूंद कितनी मिल पाई है
अम्बर के हिय पे सर रख के
नीर बहा कर आई है
सावन में किस के मन में
नव हिलोर सी मचा आई है
रीती रह न जाये सखि
बरखा की ऋतु देख आई है
आराधना राय अरु
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