ना आ सकूँगी

मेरी  सोच के परदे पे तूम रोज़ आ जाते हो
मुझे अपनी बेबसी का कारण रोज़ बनाते हो

 तेल से हाथ जल गया कल करछुल छुट गई
यही रामायण- महाभारत धर की बताते  हो 

कह चुकी हूँ प्रिय ना लौट कर तुम्हारे लिए
भगवान से झगड़ा कर के भी ना आ सकूँगी

तुम्हारी महक अब भी सांसो में बसी है मेरे
प्राण छुट कर नहीं छुटते  मेरे तुम्हारे बिन 

यही बातें है जो अब नहीं कह- सुन पाऊँगी
तुम्हारे मन के तारों से नाता नहीं टुटा मेरा

जहाँ सदा के लिए सब छोड़ मायके आई हूँ
तुम्हारी बन कर नहीं रह पाऊँगी  ना आऊँगी

जा कर कब कौन आ पाता यहाँ पर सदा से 
लौट कर पीछे मुड कर बस तुम्हे देखती हूँ

अनजाना सपना है, सच तुम मेरी सोच हो
या तुम्हारी सोच मैं अब भी हूँ कही पर तो

आराधना राय


Comments

  1. तुम्हारी महक अब भी सांसो में बसी है मेरे
    प्राण छुट कर नहीं छुटते मेरे तुम्हारे बिन
    ---आराधना राय
    waah kya baat !!

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  2. धन्यवाद रेखा जी

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