अतुकांत

पेड़ की सूखी डाली पे
एक हरी पत्ती को देखा है तुमने
उम्मीद है किसी के जीवन जीने की
उसी पेड़ पर बसेरा चिडियों का देखा है
तोड़ कर सीमायें अनंत को पा जाती है
अपना बसेरा वो तो खुद ही बनाती है
पेड़ की सूखी डाली खुश है पेड़ भी खुश था
उडान के बीच पर झंझावातो पर नजर किस की थी
सुना है वही पेड़ कल रात तूफान में मुस्तेदी से लड़ा था
अडिग अकेला ना जाने कितनी बार हर वार से बचा था
पेड़ सुबह मुस्कुरा रहा था डाली अब सूखी नहीं थी 
जीवन और संधर्ष के बीच मुस्कुरा रही थी

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