लेखिका की रचनाये भारतीय कॉपीराइट एक्ट के तहत सुरक्षित है अंत रचनओं के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा
अतुकांत
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ज़ज्बात बोलते हैआँखों के तले
मन में ज़ज्बातो के तूफान पले
खामोश हो घंटो तुम्हे सुनती हूँ
तेरा अहसास होने का नहीं क्या
वजूद को अपने साथ बुन लेती हूँ
तूम बोलते हो में सुन तुम्हे लेती हूँ
अबके सावन हमको बहुत रुलाएगा बात - बात में तेरी याद दिलाएगा बारिश में जब भीगे भीगे फिरते थे वो बचपन लौट के फिर ना आएगा मन बेचैनी से तुमको फिर ढूंढेगा बांह पकड़ के हमको कौन सिखाएगा बाबा पापा सब नामकरण संक्षिप्त हुए अब रहा नहीं कोई जो हमें हंसाएगा सपन -सलोने सारे सब खत्म हुए खाली रातों में लोरी कौन सुनाएगा अपने पिताजी को समर्पित आज मेरे पिताजी की बरसी पर
भीतर – बाहर है कोलाहल बहता पानी सा हल हल हल छुपा हुआ है कही अंतस में मन के भीतर के विप्लव में आसन नहीं चुप रह जाना चुपके –चुपके विष पी जाना मचा रहा है हाहाकार फिर गलियों के हर एक चप्पे में चीखे गलियाँ और चोबारे क्यों मौन रहे इस क्रदन में आराधना राय
शोर में गुम है ज़िन्दगी मौन आहटों के है साये तेरे दिल से मेरे दिल तक बंद है सब तरफ की राहे अपने अपने कोटरों में बैठ करते खुद अपने से ही बाते वक़्त के पायताने पे बैठ लिखते रहे हिसाब अनगिनत लौट के आते है पर सुन नहीं सकते अपनी दिल की आवाज़े सुनने वाला कोई नहीं आज पीट रहे ढोल खुद अपना लिए शोर के बीच मैं है शोर इतना देख भी न पा रहे वो कल अपना रो पड़े ज़िन्दगी ज़िन्दगी को आज शोर मैं गुम हुए सब सन्नाटे आज
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