जान लेने के बाद





क्या जीवन में शेष रहा है
तुझे जान लेने के बाद

प्राचीर नव श्रंखलाओं की
 शिखर देख लेने के बाद

उतुंग , उन्मत ललाट
पाया जग ने नव विधान

क्या जान पाई शुधित तृषित
 चातक कि अनभिज्ञ पुकार

मान कर माना ना जिसे
क्या होगा उस पल का उपहास

शकुन्तला का दुष्यंत पर
भरत ने माना था उपकार

सुन ह्दय तू भी मेरे साथ
आए थे उस दिन सूर्य चन्द साथ

आराधना राय अरु

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