तेरी निगाहें




रोज़ आ कर बहला जाती है
तेरी अनगिनत खताए
करती है ना जाने कितनी चुगलियाँ
तेरी ख़ामोश निगाहे
गिर पडूँ तो उठा लेती है अक्सर
तेरी दो पसरी हुई बांहें
माँग लेता हूँ खुदा से जीने की
कुछ हसीन सी राहें
कुछ नहीं कहती बातें करती है बहुत
चुपचाप तेरी निगाहें

आराधना राय "अरु"

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