नवगीत--- चलता चल

 चलता चल, माझी
 चलता चल, माझी

 डगमग डोले नैइया
  इसमें चलता चल

 लहर पे लहराती
 नदी है गहराती
सुनाए क्या राग रागी
मस्त हो पी हाला
रात भर है जागी

लहरों की धार देख ,
तू चला चल
मन कि तान पे
हंसतीपल दो पल
राग सुना हर रंग का
मन की बस्ती है,माझी
कहे मेरी बीती उमरिया
चलता चल
चलता चल, माझी
चलता चल


आराधना राय "अरु"

संस्कृति व लोकतत्त्व का समावेश हो। २. तुकान्त की जगह लयात्मकता को प्रमुखता दें। ३. नए प्रतीक व नए बिम्बों का प्रयोग करें। ४. दृष्टिकोण वैज्ञानिकता लिए हो। ५. सकारात्मक सोच हो। ६. बात कहने का ढंग कुछ नया हो और जो कुछ कहें उसे प्रभावशाली ढंग से कहें। ७. शब्द-भंडार जितना अधिक होगा नवगीत उतना अच्छा लिख सकेंगे। ८. नवगीत को छन्द के बंधन से मुक्त रखा गया है परंतु लयात्मकता की पायल उसका शृंगार है, इसलिए लय को अवश्य ध्यान में रखकर लिखे और उस लय का पूरे नवगीत में निर्वाह करें। ९. नवगीत लिखने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि प्रकृतिका सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करें और जब स्वयं को प्रकृति का एक अंग मान लेगें तो लिखना सहज हो जाएगा।

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