स्वप्न







बादलों की पालकी पे हो सवार
इंद्रधनुषी सपने हो रहे साकार
कोई प्रियतम बन के आता है
क्यों मुझे फिर भरमा जाता है

सावन तुम नयनों से आते हो    
जलज बरस-बरस के जाते हो
पीड़ा अनाम बन कर आते हो
हृदय को कंपित कर  जाते हो
क्या बात हैं यूँ कह के जाते हो
मदभरे से स्वप्न दिए जाते हो

वेदना सह कर यूँ मुस्कुराते हो
मुझे इतना क्यों तुम रुलाते हो
जीवन के प्रश्न हल कर रही हूँ
जानें कैसा अध्ययन कर रही हूँ
ईश्वर में तुझ से ही मिल रही हूँ
"अरु"नियति के बाण सह रही हूँ
आराधना राय "अरु "

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