लेखिका की रचनाये भारतीय कॉपीराइट एक्ट के तहत सुरक्षित है अंत रचनओं के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा
भोर
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भोर ने आँखें अपनी खोली है
उनीदीं आँखों से देखती है वो
रेशमी पलकें उठती है उसकी
पल्ल्व पात बहक से उठते है
छेड़ कर वरुण- वायु जाती है
सुमन सी व्यार बह जाती है
देख ये भोर रुपहली आती है
'अरु ' तुझे भी खूब बहकती है
आराधना राय 'अरु '
साभार गुगल ----------------------------- सुबह से शाम ज़िन्दगी के ताने-बाने बुने रेशम से महीन धागे से रिश्तों के पैबंद सिले जार- जार रो कर तुझ से मिले डूब कर देखा कभी सहरा भी गिला लगे इस तरह रोज़ हम तुझ से मिले समंदर में उस तरह से हम हर एक दरिया से मिले... ज़िन्दगी बता हम तुझ से क्यों मिले मेरी बदहवासी देखी तूने..... रोती आवाज़े भी सुनी तूने बेबस है इसलिए हम तुझ से मिले.... जीने के लिए मर कर क्या तुझ से मिले.. अरु बहुत अभी अश्क पीने को....प्यासा गर दरिया है दरिया क्यों रहे... आराधना राय" अरु"
साभार गुगल बेवज़ह की बातों में रखा क्या है तेरी झूठी बातों में रखा क्या है आईना होता तो दिखलाता शक्ल इन ज़ुबानी बातों में रखा क्या है तोड़ दी तुमने वादों से अपनी अना बेकार की बातों में रखा क्या है हम भी दुनियाँ देख कर आए सनम बुतपरस्ती निभाने में रखा क्या है पैमानों का सब्र टूट जाए इक यहाँ तेरे इन रीते प्यालों में रखा क्या है बेपनाह मौहबते नाहक ना जता "अरु" बात बेबात की बातों में रखा क्या है आराधना राय "अरु"
साभार गुगल तुम्हें हर पल महसूस करना अपनी हथेलियों में भरना चाँद के टुकड़े में भीगों कर माथे पर सजा कर रखना साथ तुम्हारें हर पल रहना माना तुम हो मेरा गहना सूरज को मान कर गहना किरणों की ऊष्मा को पहना तेरीआभा को लगा कर सीने तुम्हें अपना कर साथ चलना आराधना राय "अरु"
बहुत सुन्दर कविता है
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