मिलोगे .....................................





     मिलोगे
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सुबह के कोहरे को अोढ़े
तुम मिलोगे तो सही
शाम की सुगबुगाहट में
तुम ही होगे फिर कही
घने देवदार के सहारे
रोक लो गे तुम कही
शर्मीली सी वादियों में
तुम ही दिखोगे फिर कही
देर तक मिल कर चले
अब रुक भी जाओ तुम कही
एक दिन मुझ से मिलोगे
बन के शिवाला कोई
बात इतनी सी है केवल
मेरे बन पाओगें भी नहीं
साथ तेरे मैं दूर तक आऊँगी
हाशिया खींच के ठहर जाऊँगी
किसी रोज़ तेरी बन  जाऊँगी
तुम मिलोगे किसी मोड़ पे मुझे
मेरे बन पाओगें भी नहीं

 आराधना राय 'अरु'

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