रात बहारों के नग्में गाती है


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साभार गुगल
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चाँद को देख जाने
क्यों मुस्कुराती हो
हवाओं का मंद मंद सा
राग सुनाती हो
जैसे देखा हो पहली-
पहली बार तुम्हें
अनजान बन सामने
मेरे आ जाती हो

तुम्हे इंतज़ार है मेरा
कितनी सदियों से
एक अनबूझी पहेली बन
 सामने आती हो
नजर मिला , कभी झुका
कहीं बातें तुमने
सुबुगाहट लिए मन में
 चुपचाप रह जाती हो

शबनम पीरों आँखों में
किस बात का अहसास कराती हो
शीतल छांव सा चंवर
 डुला मन सहला जाती हो
धुप की तपिश में सुलगता
 हुआ तेरा चेहरा लगा
ओंस से भीगी  बातों से मन
 के घाव भर जाती हो

मेधवर्णी श्यामल तृप्त भाव से
देख किस को समझाती हो
रात के डोले में बैठ बीते दिन
याद कराती हो
तूम कुछ और नहीं  स्वपन हो
क्यों हँस कर मुझे तूम बताती हो

आराधना राय ''अरु''






Comments

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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    1. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद हिमकर जी

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  2. अच्छी कविता है । भावपूर्ण और सरस।

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    1. आज लग रहा है सम्पुण जगत मिल गया धन्यवाद

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  3. Replies
    1. नमन आभार है आपका....धन्यवाद सुशील जी

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  4. बहुत सुंदर । चाँद को देख जाने .....

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    1. आप के दो शब्द मूल्यवान है मेरे लिए धन्यवाद

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