कह दूँ
मौन रहूँ या सब तुमसे कह दूँ
प्रीत की अनबुझी पहेलियाँ
अपने ह्दय पर हाथ रखूं
कैसे धुप मारी किलकारियाँ
अलसाया सूरज हँस पड़ा क्यों
सधन घन ने की जो चुगलियाँ
आसमान ने फिर आँखे खोली
उनीदीं अदिति ने ली अंगड़ाईयाँ
मौन रहूँ या सब कुछ तुमसे कह दूँ
आराधना राय "अरु"
प्रीत की अनबुझी पहेलियाँ
अपने ह्दय पर हाथ रखूं
कैसे धुप मारी किलकारियाँ
अलसाया सूरज हँस पड़ा क्यों
सधन घन ने की जो चुगलियाँ
आसमान ने फिर आँखे खोली
उनीदीं अदिति ने ली अंगड़ाईयाँ
मौन रहूँ या सब कुछ तुमसे कह दूँ
आराधना राय "अरु"
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (29.01.2016) को "धूप अब खिलने लगी है" (चर्चा अंक-2236)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteप्रेम तो सब कुछ बिन कहे ही कह जाता है ...
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