कह दूँ

मौन रहूँ या सब तुमसे कह दूँ
प्रीत की अनबुझी पहेलियाँ
अपने ह्दय पर हाथ रखूं
कैसे धुप मारी किलकारियाँ

अलसाया सूरज हँस पड़ा क्यों
सधन घन ने की जो चुगलियाँ
आसमान ने फिर आँखे खोली
उनीदीं अदिति ने ली अंगड़ाईयाँ

मौन रहूँ या सब कुछ तुमसे कह दूँ

आराधना राय "अरु"


Comments

  1. प्रेम तो सब कुछ बिन कहे ही कह जाता है ...

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