उदासी नज़्म
तमाम ख्वाहिशें पल में खाक हुई बात ही बात में क्या खता हुई किसी दरख्त का साया पासबां नहीं धुप रास्तों कि जब नसीब हुई पाँव नहीं दिल पे छाले पाए है गम मिरे नाम इतने आए है बू - ए आवारा पूछती रही गम का सबब भटकती रही थी यू भी तेरे बगैर कहीं शाम के बाद तेरे निशां होंगे कहाँ वक़्त से गुज़रें तो अब हम होगे कहाँ जश्न रुसवाइयों का मानते भी क्यों सामने खुदा रहा अरु उसे भुलाते भी क्यों आराधना राय अरु