रोज़

रोज़ लगते है मेले मेरे दर पर 
तेरी यादों के
रोज़ अपने हाथो से कोई 
तस्वीर पोछ देती हूँ

रोज़ बता कर अश्क
आखों से लुढकते है
रोज़ सुबह मेरी पेशानी 
पर महसूस करती हूँ

रोज़ तूम को देख कर
अनजान बनती हूँ
रोज़ थोडा थोडा तूम पे
रोज़ मरती हूँ

तेरी यादे है तूम भी हो
फिर भी तुम्हारे बिन
यूँ ही जीती हूँ


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