केवल आह






केवल आह से उपजा होगा
कवि के अंतस का छिपा उफान
दर्द की भाषा लिखता होगा
विहल हो अश्रु से वह नादान

प्रीत का मोल चुकाया होगा
 पीर बनी हो उसकी पहचान
नित -नए स्वपन दिखाता होगा
आशाओं के बस  स्वर्ण - विहान

समय बोल कर उड़ गया होगा
पाखी ज्यों उड़ कर गया वितान
दर्द शेष रह गया तो होगा
जल कर दीप बन गया अनजान

आराधना राय "अरु" 

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