याद नहीं करती हूँ
तुझे भूल जाने के डर से,
याद नहीं करती हूँ
तेरी बात दिल के कोने में,
छुपा के रख लेती हूँ
तेरे दिए एक आसरे पे ,
सुबह से शाम रोज़ करती हूँ
किसी रोज़ मुझ से तुम पूछना,
क्या में तुम पे मरती हूँ
तो यही कहूँगी हँस के तुझ से मैं,
तेरे रोम रोम में बसती हूँ
तुझे याद जिस -पल मैं आ सकूँ ,
मैं उन्ही पलों पे मरती हूँ
तुम मेरी और मैं तेरी साँस मैं रहती हूँ।
आराधना राय 'अरु'
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