बिछड़ गई हूँ
साभार गूगल
वक़्त के मोड़ पर तुझ से बिछड़ गई हूँ
दीवार पे टंगी धड़ी की तरह रुक गई हूँ
सोच की आंधी में कही खुद थम गई हूँ
राह में चल कर ही तो ज़ख़्मी हो गई हूँ
नदियों के प्रवाह को मोड़ कही खो गई हूँ
धरती से बढ़ा नेह खंडित स्वयं हो गई हूँ
काल की कठिन परीक्षा में पार्थ मैं खड़ी हूँ
समय की डोर थामे वो सारथी ढूँढ रही हूँ
आराधना राय "अरु"
अति सुंदर कृति ।
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