ना जाने क्यों

 

 साभार गूगल




     ना जाने क्यों
    तुम्हें  ढूँढती रही
    राह अपनी खोजती रही
    तुम्हें पाने के लिए
   तुम्हें ही खो कर
    हँसती रही
   तुम से मिलने के
   जतन करती रही
   सिर्फ़ तुम्हें पाने के लिए
   सोचती हूँ तुम से नाता क्या था
   आँसू आँखों से बहे और बहते रहे
   फिर भी तेरे दर्द को झेल क्यों गई
   यूँ तेरा मुझ से मिलना क्या था
   जब तूने मुझे जाना ही नहीं था
    आराधना राय "अरु"
    अतुकान्त कविता
  

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