भूल गई थी
साभार गूगल
उस रात भूल गई थी
मेरा दिल अभी वहीं पड़ा था
टुटा सा , बेकार हो कर
कही गिरा हुआ था
लम्हों की बारात चाँद तारों
के साथ रही
फिर दिल ने धड़क के
बात कही थी
दिल भी मेरा वहीं
कही पड़ा था
कुछ उलझा सा , सुलझा
नहीं था
मैंने सोचा तुमने उठा
लिया होगा
अपना समझ के ले
लिया होगा
पर किसी और का सामान
तुम लेते नहीं
मेरा दिल क्या लेते ,खुद
अपना सारा काम
कर लेते हो , फिर मुझ से
भला क्या लेते
उदास हो मैंने दिल
उठा लिया
घर आ के देखा उस
पे दो टाँके लगे थे
दिल अब भी पास है मेरे ,
पर क्या पता था वो मेरा
नहीं तेरा दिल
ले आई हूँ अपना कर
इसे खुद से अलग
अब तक क्यों नहीं कर पाई हूँ।
आराधना राय "अरु"
very nice
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeletedhnywad rajesh ji
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