लेखिका की रचनाये भारतीय कॉपीराइट एक्ट के तहत सुरक्षित है अंत रचनओं के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा
भोर
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भोर ने आँखें अपनी खोली है
उनीदीं आँखों से देखती है वो
रेशमी पलकें उठती है उसकी
पल्ल्व पात बहक से उठते है
छेड़ कर वरुण- वायु जाती है
सुमन सी व्यार बह जाती है
देख ये भोर रुपहली आती है
'अरु ' तुझे भी खूब बहकती है
आराधना राय 'अरु '
अबके सावन हमको बहुत रुलाएगा बात - बात में तेरी याद दिलाएगा बारिश में जब भीगे भीगे फिरते थे वो बचपन लौट के फिर ना आएगा मन बेचैनी से तुमको फिर ढूंढेगा बांह पकड़ के हमको कौन सिखाएगा बाबा पापा सब नामकरण संक्षिप्त हुए अब रहा नहीं कोई जो हमें हंसाएगा सपन -सलोने सारे सब खत्म हुए खाली रातों में लोरी कौन सुनाएगा अपने पिताजी को समर्पित आज मेरे पिताजी की बरसी पर
साभार गुगल बसे हो मेरी सांसो में तूम धड़कन में छा जाते हो बसे हो मेरी................................ तुम अपनी साँसों से हर पल ही महकाते हो बसे हो मेरी................................ लो बनकर जीती हूँ अबतक तूम संग मेरे जल जाते हो बसे हो मेरी................................ देख ली इस दिल की बैचेनी मर कर इश्क़ को पाते हो बसे हो मेरी................................ पास रहो या दूर रहो तुम तुम मुझ में रह जाते हो बसे हो मेरी................................ सपना बन कर आने वाले आँसू बन क्यों आते हो बसे हो मेरी....... सुख दुःख के साथी हो मेरे मीत मेरे अनुरागी हो बसे हो मेरी.......
भीतर – बाहर है कोलाहल बहता पानी सा हल हल हल छुपा हुआ है कही अंतस में मन के भीतर के विप्लव में आसन नहीं चुप रह जाना चुपके –चुपके विष पी जाना मचा रहा है हाहाकार फिर गलियों के हर एक चप्पे में चीखे गलियाँ और चोबारे क्यों मौन रहे इस क्रदन में आराधना राय
बहुत सुन्दर कविता है
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