शब्दों के बाण
आशा और निराशा के बीच
जो श्रण मैंने और तुमने बांटे है
सोचों कितनी सच्चाई से मैंने आँके है
तुम्हारे उपहास से मैंने अश्रु नहीं बहाये है
टीस को ह्रदय में बंद कर अर्थ जीवन के मैंने नए पाये है
सच कहुँ तो तुमसे अधिक दर्द मैंने ही अब तक पाये है
तुम से अधिक विकल हो अधीर हो चुप -चाप सहज हो कर
विष बुझे शब्दों के बाण हर पल मनुष्य हो कर मैंने ही तो खाए है
"अरु" बहिष्कृत हो कर यूँ ही ना जानें कौन से स्वपन सजाएँ है।
आराधना राय "अरु "
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नई कविता या अपारंपरिक कविताएँ , जो छंद मुक्त होती है ,
पानी की तरह सरल भाव को प्रदर्शित करती हैं। "चंपा के फूल" इस ब्लॉग में केवल हिंदी कविताओं को स्थान दे रही हूँ।
आराधना राय "अरु"
लेखिका , कवित्री
आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
http://sanjaybhaskar.blogspot.in