कोलाहल
भीतर – बाहर है कोलाहल
बहता पानी सा हल हल हल
छुपा हुआ है कही अंतस में
मन के भीतर के विप्लव में
आसन नहीं चुप रह जाना
चुपके –चुपके विष पी जाना
मचा रहा है हाहाकार फिर
गलियों के हर एक चप्पे में
चीखे गलियाँ और चोबारे
क्यों मौन रहे इस क्रदन में
आराधना राय
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