प्रीत
साभार गूगल
प्रीत करती रही श्रृंगार अपना
मूक नयनों ने किया प्रणय कितना
हृदय में खिलते रहे प्रसून प्रेम के
हृदय में बज़ते रहे सितार से कितने
गीत अधूरे गा -गा कर छोड़ दिए
स्वर करते भी रहे निनाद कितना
मन झंकृत हुआ वीणा कि तारों सा
कोई करता रहा मान -मनुहार कितना
धरा ने धानी चुनरिया अपनी ओढ़ी है
क्षितिज हुआ है मौन देख अब कितना
रूप ,गंध ,मधुरिम किलकोरियों से
कोई लुटाता रहा यूँ प्रेम कितना
अदिति रही अबूझ पहेली सी
अलख जगा गया 'अरु' कितना
आराधना राय 'अरु '
काव्य -गीत
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