साक्षी कहलाता कोई
साक्षी कहलाता है कोई
----------------------------------
सुधियों के महाजाल का ताना बुनता है कोई
प्राची के आँगन द्वार पे बहला जाता है कोई
उड़ते पाखी तू ही बता जा श्रृंगार करता है कोई
हृदय से चन्द्र वरण कर यूँ ही अपनाता है कोई
जलज के नीर से भी पूछा क्यों बलखता है कोई
व्यर्थ दर्प भार न सह कर सूर्य बन जाता है कोई
रंगिणी के मंगलाचरण पर इठलाता कब है कोई
सृष्टि के आचरण को पतित बतलाता ना है कोई
रवि ही निरन्तर साक्षी 'अरु' क्यों कहलाता है कोई
निज के लिए कर्म का जीवन जी के बतलाता है कोई
प्राची के आँगन द्वार पे बहला जाता है कोई
उड़ते पाखी तू ही बता जा श्रृंगार करता है कोई
हृदय से चन्द्र वरण कर यूँ ही अपनाता है कोई
जलज के नीर से भी पूछा क्यों बलखता है कोई
व्यर्थ दर्प भार न सह कर सूर्य बन जाता है कोई
रंगिणी के मंगलाचरण पर इठलाता कब है कोई
सृष्टि के आचरण को पतित बतलाता ना है कोई
रवि ही निरन्तर साक्षी 'अरु' क्यों कहलाता है कोई
निज के लिए कर्म का जीवन जी के बतलाता है कोई
आराधना राय "अरु"
आराधना राय "अरु"
Comments
Post a Comment