तिरपाल सा बिछोना है
एक नव गीत का प्रयास
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जीवन क्या तिरपाल सा बिछोना है
आंसुओ से धो कर पोछ भिगोना है
आशाए क्यों सजो कर उससे रखू मैं
अपने हाथों से सब हीस्वयं सज़ोना है
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जीवन क्या तिरपाल सा बिछोना है
आंसुओ से धो कर पोछ भिगोना है
आशाए क्यों सजो कर उससे रखू मैं
अपने हाथों से सब हीस्वयं सज़ोना है
आड़ी तिरछी लकीरें क्या खिलौना है
आए थे इसलिए क्या हँस के रोना है
पराई प्रीत क्या कहूँ तुझ से सबकी मैं
आज जो है वो कल कहाँ अब होना है
आए थे इसलिए क्या हँस के रोना है
पराई प्रीत क्या कहूँ तुझ से सबकी मैं
आज जो है वो कल कहाँ अब होना है
दूर से गाँव ,बस्ती सब अच्छी लगती है
गुनगुनाते हुए शहर की हस्ती लगती है
रात को देख कर डराने लगा फिर मुझे
उनकी बातें है कहाँ वो सच्ची लगती है
गुनगुनाते हुए शहर की हस्ती लगती है
रात को देख कर डराने लगा फिर मुझे
उनकी बातें है कहाँ वो सच्ची लगती है
आराधना राय "अरु"
Sunder panktiya!sabhar!
ReplyDeletedhnywad sanjay ji
Deletegood one
ReplyDeleteaabhar shiv raj ji
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