नव गीत


गरमी कि ऋतु
अलसाई चली आई
अब ना सुहाए 
काज़ल मोहे हाय
पसीने से तर
पसीजे से जाए
बिंदी मेरी बही चली जाए
ग्रीषम ऋतु मोहे
ना सखी भाए
धरती ने बदला रुख
अपना हाय - हाय
शर्बत ,ना लस्सी
जी कहीं ना लग पाए
सूरज से आँख
मिलाना नहीं भाए
सूखी धरती
का दुःख
अखियन देख नहीं पाए
कोयल कि कुक
चैन दे जाए
गरमी बातें
चांदनी में नहा जाए
आराधना राय "अरु"






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