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अच्छा होता

क्वार कार्तिक की धुप में तपने से अच्छा होता जेठ की दुपहरी सह लेते वकावाली खाने से अच्छा नीम कसली खा लेते मृत्यु की ठंडक सहने से बेहतर जीवन की गर्मी सह लेते सघन वृक्ष की छांव में गुम हो रहने से धुप- छांव सह लेते आराधना राय

घर

मेरे घर के आँगन में वो अपना घर बसती है कभी दाना , कभी कतरन वो खूब चुराती है चार दानो से खुश हो जाती है धड़कने दिल की वो बढाती है एक गिलहरी का घर है पेड़ के कोटर में अपने बच्चो को बड़ा कर फिर छोड़ देगी वो कल जो उसका था आज भी उसका कोटर होगा वो मुझे देख ना जाने क्या कह जाती है वो उसकी बाते में समझ नहीं पाती हूँ आराधना राय

दुनियाँ कविता अतुकांत

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साभार गुगल छांव - धुप सी है ये दुनियाँ क्या प्रेम प्रीत सी बंधी दुनियाँ चाहे स्वीकार करो ना करो अपने - अपने ध्रुवों पे अडिग गोल - गोल धूमती है दुनियाँ बोलो दो चाहे चुप तूम रहो  अपनी - नियति से  बंधे  सच - झूठ के बोल बोलते खानों और अलग खांचो में समय के बोल बोलती है दुनियाँ

ज़िन्दगी

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साभार गुगल टुकडो - टुकडों में  बंटी यह ज़िन्दगी  मिली है गुलाबी सर्द राते जैसे चादर में लिपटी हुई है मद्धम - मद्धम बदली है सर्दी तो  कभी गर्मी है नर्म तानो बानो से बुनी सात रंगों के रंग में रंगी काली, नीली कभी पीली ज़िन्दगी के ताने - बाने  है सुलझते- उलझते मन के तार कभी टूट कर जुड़ते है आशा , निराशा में बंध के चाँद सितारे आसमां रोते है दिन के चटकीले  रंगों में आंसू भी छिप से जाते है रात को शबनम बन कर मेरे मन पे तन पे गिरते है आराधना राय अरु

तूम पूछो मैं बतलाऊँ

तूम पूछो  मैं  बतलाऊँ मैं कहूँ तूम सुनते जाओ जीवन की रीत अनोखी सी जिसमें  यूँ ही बहती जाऊँ तूम पूछो  मैं  बतलाऊँ चाँद अकेला ही रहता है या ताका करता है धरती को चन्द्र- चकोर की बातों की प्रीत क्या तूम को सिखलाऊँ तूम पूछो  मैं  बतलाऊँ नहीं नाचता मयूर सा मनवा थाप नहीं जब धड़कन की तूम पूछो  मैं  बतलाऊँ बदल - बिजुरी का क्या नाता क्या दिल की बात समझाऊँ बदरा बोले बिजली चमके  तब मन मयूर सा झनके  बोलो प्रीत की रीत समझाऊँ तूम पूछो  मैं  बतलाऊँ आराधना राय

अतुकांत

पेड़ की सूखी डाली पे एक हरी पत्ती को देखा है तुमने उम्मीद है किसी के जीवन जीने की उसी पेड़ पर बसेरा चिडियों का देखा है तोड़ कर सीमायें अनंत को पा जाती है अपना बसेरा वो तो खुद ही बनाती है पेड़ की सूखी डाली खुश है पेड़ भी खुश था उडान के बीच पर झंझावातो पर नजर किस की थी सुना है वही पेड़ कल रात तूफान में मुस्तेदी से लड़ा था अडिग अकेला ना जाने कितनी बार हर वार से बचा था पेड़ सुबह मुस्कुरा रहा था डाली अब सूखी नहीं थी  जीवन और संधर्ष के बीच मुस्कुरा रही थी

अतुकांत

ज़ज्बात बोलते हैआँखों के तले मन में ज़ज्बातो के तूफान पले खामोश हो घंटो तुम्हे सुनती हूँ तेरा अहसास होने का नहीं क्या वजूद को अपने साथ बुन लेती हूँ तूम बोलते हो में सुन तुम्हे लेती हूँ   आराधना राय अरु