दुनियाँ कविता अतुकांत
साभार गुगल
क्या प्रेम प्रीत सी बंधी दुनियाँ
चाहे स्वीकार करो ना करो
अपने - अपने ध्रुवों पे अडिग
गोल - गोल धूमती है दुनियाँ
बोलो दो चाहे चुप तूम रहो
अपनी - नियति से बंधे
सच - झूठ के बोल बोलते
खानों और अलग खांचो में
समय के बोल बोलती है दुनियाँ
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