लेखिका की रचनाये भारतीय कॉपीराइट एक्ट के तहत सुरक्षित है अंत रचनओं के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा
अच्छा होता
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क्वार कार्तिक की
धुप में तपने से
अच्छा होता
जेठ की दुपहरी
सह लेते
वकावाली खाने
से अच्छा
नीम कसली
खा लेते
मृत्यु की ठंडक
सहने से
बेहतर
जीवन की
गर्मी सह
लेते
सघन वृक्ष
की छांव में
गुम हो रहने
से
धुप- छांव
सह लेते
साभार गुगल सीमा लांघ कैसी वो वहीँ क्यों पड़ा था मृत्यु अश्रु से नहीं हँस के सह रहा था मौन हो शव तेरा भूमि पर यूँ गिरा था श्वास अंतिम बार तूने ले ये कहा था ऋण मिट्टी का था अब चुकता ही हुआ जीवन तुझ से ही यहीं तो मुक्त हुआ माँ के प्रेम को क्या झुठला यूँ सकूँगा मृत्यु पथ पर ना तुझ से विलग हुआ हँस के देना विदा की धरती की है सुता मृत्यु नहीं अमरत्व को अब पा जाता हूँ सैकड़ों में बंट कर देख फिर आ जाता हूँ देश को नमन कर वो "अरु"यूँ हँस रहा था आराधना राय "अरु" -----------------------------------------------------------
साभार गुगल बेवज़ह की बातों में रखा क्या है तेरी झूठी बातों में रखा क्या है आईना होता तो दिखलाता शक्ल इन ज़ुबानी बातों में रखा क्या है तोड़ दी तुमने वादों से अपनी अना बेकार की बातों में रखा क्या है हम भी दुनियाँ देख कर आए सनम बुतपरस्ती निभाने में रखा क्या है पैमानों का सब्र टूट जाए इक यहाँ तेरे इन रीते प्यालों में रखा क्या है बेपनाह मौहबते नाहक ना जता "अरु" बात बेबात की बातों में रखा क्या है आराधना राय "अरु"
गुलो - गुलज़ार की बातो से डर लगता है अब तो तेरे आने से भी डर लगता है वो जो रोनके बढ़ा रहे थे महफ़िल की उनकी रुसवाइयों से भी डर लगता है शाम थी शमा थी मय औ मीना भी बस उसे लब से लगाने से डर लगता है शज़र जो मेरे सर पर कल सरे शब रहा उस के कट जाने का भी डर लगता है आराधना राय
सुन्दर
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