घर
मेरे घर के आँगन में वो
अपना घर बसती है
कभी दाना , कभी कतरन
वो खूब चुराती है
चार दानो से खुश
हो जाती है
धड़कने दिल की
वो बढाती है
एक गिलहरी
का घर है
पेड़ के कोटर में
अपने बच्चो को
बड़ा कर फिर
छोड़ देगी वो
कल जो उसका था
आज भी उसका
कोटर होगा वो
मुझे देख ना जाने
क्या कह जाती है वो
उसकी बाते में समझ
नहीं पाती हूँ
आराधना राय
अपना घर बसती है
कभी दाना , कभी कतरन
वो खूब चुराती है
चार दानो से खुश
हो जाती है
धड़कने दिल की
वो बढाती है
एक गिलहरी
का घर है
पेड़ के कोटर में
अपने बच्चो को
बड़ा कर फिर
छोड़ देगी वो
कल जो उसका था
आज भी उसका
कोटर होगा वो
मुझे देख ना जाने
क्या कह जाती है वो
उसकी बाते में समझ
नहीं पाती हूँ
आराधना राय
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