अलबेली
नयनो के कोर से काज़ल चुराया है
आसमान से शायद बिदियाँ लगी है
लोगों ने समझा होगा कोई धब्बा है
माँ के लिए नज़र बट्टू का ठिगोना है
पूछती फिर भी संध्या की सहेली है
रात तारों वाली कितनी अलबेली है
दिन सावन था हरा -हरा सब जब था
द्वार तक आती थी नदियाँ सहेली सी
बारिश के मौसम में रंग अलबेला सा
माँ के हाथ की होती भजिया पकोड़ी थी
एक सपना मैन देखा है माँ तुझे देखा है
धुप , बारिश में ठड के महीने में देखा है
चारोंपहर बस तुझे काम करते देखा है
भगवान अनोखा इस दुनियाँ में देखा है
आराधना राय अरु
Comments
Post a Comment