बात पुरानी थी
साभार गुगल
तुमने कही कोई बात पुरानी थी
मेरे बोलो में तेरी ही कहानी थी
बोल बोलते से हँसे म्रदु मधुकर
जागते सोते लम्हों में बयानी थी
स्मृति- के पंख लगा उड़ गई थी
मुख से मौन हो क्या कह गई थी
मुझ से रूठी सी बात कह गए थे
तुम्हारी में सदा के लिए हो गई थे
शब्दों के फासलें पड़े रह गए थे
दूर आहटों को पुकार कह गए थे
स्वपन झरते थे किस पारिजात से
भूल से क्या कुछ मुझे कह गए थे
जड़ हो थी तुम चेतना ही हो गए थे
बिना साज़ के "अरु" बिन रह गए थे
आराधना राय" अरु"
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