साभार गुगल सीमा लांघ कैसी वो वहीँ क्यों पड़ा था मृत्यु अश्रु से नहीं हँस के सह रहा था मौन हो शव तेरा भूमि पर यूँ गिरा था श्वास अंतिम बार तूने ले ये कहा था ऋण मिट्टी का था अब चुकता ही हुआ जीवन तुझ से ही यहीं तो मुक्त हुआ माँ के प्रेम को क्या झुठला यूँ सकूँगा मृत्यु पथ पर ना तुझ से विलग हुआ हँस के देना विदा की धरती की है सुता मृत्यु नहीं अमरत्व को अब पा जाता हूँ सैकड़ों में बंट कर देख फिर आ जाता हूँ देश को नमन कर वो "अरु"यूँ हँस रहा था आराधना राय "अरु" -----------------------------------------------------------
दिल को छूते अहसास...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहदय से नमन कैलाश जी
Deleteआप कि आभारी हूँ यशोधरा अग्रवाल जी
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