ना पाती
नदी हूँ ,बह नहीं पाती
चिट्ठी हूँ कह नहीं पाती
चाँद तुझको भी देखा है
बात तुझे कह नहीं पाती
दीये कि टिमटिमाती लों
जली मगर बुझ ना पाती
मैं हूँ कि नही अब जिंदा
ये बात कह नहीं अब पाती
निकली हूँ मैं रेगिस्तानों से
आस हूँ जुड़ नहीं क्यों पाती
चिट्ठी हूँ कह नहीं पाती
चाँद तुझको भी देखा है
बात तुझे कह नहीं पाती
दीये कि टिमटिमाती लों
जली मगर बुझ ना पाती
मैं हूँ कि नही अब जिंदा
ये बात कह नहीं अब पाती
निकली हूँ मैं रेगिस्तानों से
आस हूँ जुड़ नहीं क्यों पाती
आराधना राय "अरु"
अंतस की वेदना की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
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