उदासी नज़्म
तमाम ख्वाहिशें पल में खाक हुई
बात ही बात में क्या खता हुई
किसी दरख्त का साया पासबां नहीं
धुप रास्तों कि जब नसीब हुई
पाँव नहीं दिल पे छाले पाए है
गम मिरे नाम इतने आए है
बू - ए आवारा पूछती रही गम का सबब
भटकती रही थी यू भी तेरे बगैर कहीं
शाम के बाद तेरे निशां होंगे कहाँ
वक़्त से गुज़रें तो अब हम होगे कहाँ
जश्न रुसवाइयों का मानते भी क्यों
सामने खुदा रहा अरु उसे भुलाते भी क्यों
आराधना राय अरु
bahut he sunder nazam hai ,ek jigyaasa the man mei aap jaise vidushee se poochhne ke liye , gazal aur nazam mei ek tarah se bichhoh udaasi viyog ka sammishran hota hai , kya yeh paraspar sambhandhit hote hai , agar aap meri jigyaasa ko shant kar paaye to mai aapka anugraheer rahunga ,
ReplyDeleteग़ज़ल के शेर गुलदस्ते के मनिद होते है.... दो मिसरों में पूरी बात और पूरी ग़ज़ल अपनी अलग अलग बात कहती है, ग़ज़ल ख़ुशी पर होती है दुःख पर होती है उसमे मतला मखता होता है रदीफ काफिए कि बंदिश होती हैनज़्म गीत होती है एक ही बात को विस्तार से कहती हुई चाहे दुःख पर कह लो या सुख पर
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