नज़्म डर
गुलो - गुलज़ार की बातो से डर लगता है
अब तो तेरे आने से भी डर लगता है
वो जो रोनके बढ़ा रहे थे महफ़िल की
उनकी रुसवाइयों से भी डर लगता है
शाम थी शमा थी मय औ मीना भी
बस उसे लब से लगाने से डर लगता है
शज़र जो मेरे सर पर कल सरे शब रहा
उस के कट जाने का भी डर लगता है
आराधना राय
अब तो तेरे आने से भी डर लगता है
वो जो रोनके बढ़ा रहे थे महफ़िल की
उनकी रुसवाइयों से भी डर लगता है
शाम थी शमा थी मय औ मीना भी
बस उसे लब से लगाने से डर लगता है
शज़र जो मेरे सर पर कल सरे शब रहा
उस के कट जाने का भी डर लगता है
आराधना राय
Comments
Post a Comment