पहचान हुई




2----- कविता

मेरे दुख से तेरी  ही पहचान हुई
मन कि बातों कि शुरुआत हुई
लगा सालने मुझे आकाश नया
मेरे संसार कि कैसी यह बात हुई
रात  मुझे से देख के खामोश हुई
शोर  मचा के पवन  परेशान  हुई
चूल्हे कि जली आग धौकनी  हुई
मुँह फाड़े देख रही व्याकुल आँखे
चूल्हे कि रोटी जल कर खाक हुई
भूखे पेट पे  अत्याचार कि रात हुई
गीत लिखूं कैसे किस को बता मुझे
घर बात जब चोपालों में जा आम हुई
हँसी चन्दा कि जैसे मन्द सी ही हुई
आँख के आँसूं पीने कि ना बात हुई
चुप रह कर दुख से  तेरी पहचान हुई
मेरा दुख जब तेरा दुख बन नुस्काया
समझ ले उस दिन तुझ से पहचान हुई
मन मुदित हुआ कह कर क्या बात हुई
आराधना राय "अरु"

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