जरुरी तो नहीं
भूलना वो हर बात जरुरी तो नहीं
तुझे याद कर रो लेना जरूरी तो नहीं
माना गर्दिश ए आलम का मारा है वो
उम्र भर यूँही उसे सोचना जरुरी तो नहीं
रास्ते और निकल जाते है मंजिलों तक
यूँही महफिलों में धुमना जरुरी तो नहीं
आसमान की खिड़की से कोई देखता है
अर्श पे उम्र बसर करना जरुरी तो नहीं
तेरे लिए देख सितारें तरस के रह जाएगे
अपना कह कर देख लेना जरुरी तो नहीं
इश्क इबादत है,आराधना, छु कर देखो
हाथ आ जाए सनम कोई ज़रूरी तो नहीं
आराधना राय aru
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